हिन्दी दिवस : देश की आत्मा में बसी है हिन्दी भाषा
लोग हिन्दी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हो, लेकिन वास्तविकता इसे परे है। आज भी जनता के सामने एक सवाल खड़ा है। क्या हिन्दी को सम्मान मिल पाया है, जितना मिलना चाहिए थी? आज हिन्दी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
सविता वर्मा गजल, साहित्यकार
132 देशों में बसे दो करोड़ लोग हिन्दी में कार्य करते हैं मगर हिन्दुस्तानी व्यक्ति अंग्रेजी को सम्मान देता। हिन्दी की उत्तपत्ति हिंदवी से हुई है उसका अर्थ है दुर्गा। हिन्दी को उसका सिंहासन मिलना ही चाहिए, जिसकी वह हकदार है।
डॉ. पुष्पलता, सहित्यकार
हिन्दी वादी क्षेत्र में हिन्दी की उपेक्षा है एक आम आदमी चाहता है कि उसका बच्चा अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करें। हिन्दी के स्थान पर अब अखबार हिंग्लिश में प्रकाशित हो रहे हैं। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
प्रदीप जैन, साहित्यकार
वर्तमान में हिन्दी विश्वस्तर पर फ्रेंच, अंग्रेजी के पश्चात तीसरे स्थान पर आती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की हिन्दी अधिकारिक भाषा बन चुकी है। साथ ही एक सौ बीस देशों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। हिन्दी के बढ़ते कदम को अभी और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
प्रकाशसुना साहित्यकार
कई वर्षों में देखा गया है कि नई पीढ़ी में हिन्दी भाषा में बात करना यह हिन्दी में बोलना निम्न दृष्टिकोण से देखा जाने लगा है जो अनुचित है। हिन्दी हमारी पहचान है। हम हिन्दी में काम करना और वार्तालाप करना बंद कर देंगे तो इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
डॉ. राजेश कुमारी, प्रधानाचार्य वेदिक पुत्री पाठशाला इंटर कॉलेज
हिन्दी भारत की आत्मा में बसी हुई है, जो हर प्रदेश में जानी पहचानी जाती है। विविधता में एकता भारत जैसे बहुभाषी देश की सबसे बड़ी शक्ति रही है। हिन्दी नाना प्रकार की विधाओं, कलाओं और संस्कृतियों की त्रिवेणी बनाती है।
डॉ. सविता वशिष्ठ, संस्कृत प्रवक्ता, जैन कन्या पाठशाला पीजी कॉलेज
वर्तमान समय में विश्व के सभी देश अपनी राष्ट्रभाषा को प्राथमिकता देते है। हिन्दी को भारत के कुछ राज्य स्वीकार नहीं करना चाहते। जैसे देश में अपने राष्ट्रीय ध्वज को लेकर जागरुकता अभियान शुरू किया गया है। वैसे ही राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए भी अभियान की शुरूआत होनी चाहिए।
डॉ. रेशु चौहान, हिन्दी विभागाध्यक्ष, जैन कन्या पाठशाला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
धारणा यह है कि हिन्दी केवल साहित्य की भाषा है। हिन्दी की सहजता ही भाषा को विशिष्ठ बनाती है। 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को राजभाषा का दर्ज मिला। हिन्दी विश्वास का प्रतिक भी है। हिन्दी को जन मानस की भाषा बनाना है। इसके लिए हमें संकल्प लेना होगा।
डॉ. सुनिता शर्मा, डीन फैकल्टी ऑफ एजुकेशन, मां शाकुंभरी देवी विश्वविद्यालय।
भारत में विभिन्न भाषा और विभिन्न संस्कृतियों के लोग रहते हैं। पूरे देश की एक भाषा होना आवश्यक है, जो विश्व में भारत की पहचान बने। आज देश को एकता की डोर में बांधने का काम यदि कोई भाषा कर सकती है तो वह हिन्दी है।
शालू गोयल, हिन्दी प्रेमी
हिन्दी भारत की वह भाषा है जो संस्कृत से जन्मी है। यह वह भाषा है जो आज उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक पूरे देश की सम्पर्क भाषा बनी। मीडिया ने इसके प्रचार व प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अपनाई। व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे सूचना मीडिया के माध्यम से विदेशों में बैठे हिन्दी सेवियों से परिचय होता रहता है।
सुशीला जोशी, विद्योत्तमा सहित्यकार
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