शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

'CAA: वसूली नोटिस वापस लें, वरना हम रद्द कर देंगे,' यूपी सरकार को SC की फटकार

स्टोरी हाइलाइट्स

  • कोर्ट ने कार्रवाई को बताया निर्धारित कानून का उल्लंघन
  • इस मामले में अब 18 फरवरी को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ साल 2019 में प्रदर्शन करनेवालों के खिलाफ यूपी सरकार ने हर्जाना वसूली के लिए नोटिस जारी किया था. अब इसे लेकर यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है. यूपी सरकार के रवैये से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को भेजे गए वसूली नोटिस राज्य शासन वापस ले, वरना हम इसे रद्द कर देंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि वह कानून के उल्लंघन के लिए शुरू की गई कार्रवाई को ही रद्द कर देगा. सुप्रीम कोर्ट में अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 फरवरी को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि दिसंबर 2019 में शुरू की गई कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित कानून के विपरीत थी, लिहाजा इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आरोपी की संपत्ति को कुर्क करने के लिए कार्रवाई करने में खुद एक "शिकायतकर्ता, निर्णायक और अभियोजक" की तरह काम किया है. लिहाजा वो ये कार्रवाई वापस ले लें या हम इस अदालत की ओर से निर्धारित कानून का उल्लंघन करने के लिए इसे रद्द कर देंगे.

सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में हुए आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन की ओर से प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस रद्द किए जाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था. ये याचिका परवेज आरिफ टीटू की ओर से दायर की गई है.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के नोटिस एक व्यक्ति के खिलाफ मनमाने तरीके से भेजे गए हैं, जिसकी मृत्यु छह साल पहले ही 94 साल की उम्र में हो गई थी. 90 साल से अधिक उम्र के दो लोगों समेत कई अन्य लोगों को भी इस तरह के नोटिस भेजे गए. यूपी सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि प्रदेश में 833 दंगाइयों के खिलाफ 106 FIR दर्ज की गईं और उनके खिलाफ 274 वसूली नोटिस जारी किए गए. इनमें से 236 में वसूली के आदेश पारित किए गए थे. 38 मामले बंद कर दिए गए.

पहले तैनात किए गए थे एडीएम

अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद के मुताबिक उस समय विरोध-प्रदर्शन के दौरान 451 पुलिसकर्मी घायल हुए थे और समानांतर आपराधिक कार्रवाई और वसूली की कार्रवाई की गई. 2020 में अधिसूचित नए कानून के तहत दावा ट्रिब्यूनल का गठन किया गया है जिसका नेतृत्व सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश कर रहे हैं. पहले इसके लिए ADM तैनात किए गए थे.

यूपी सरकार का पक्ष सुनने के बाद मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2009 और 2018 में दो फैसले पारित किए हैं. इनमें कहा गया है कि दावा ट्रिब्यूनल में न्यायिक अधिकारियों को नियुक्त किया जाना चाहिए लेकिन आपने एडीएम की नियुक्ति की. आपको कानून के तहत तय प्रक्रिया का पालन करना होगा. इस प्रक्रिया के पालन में हुई गड़बड़ की जांच करें. इसके लिए हम आपको 18 फरवरी तक आखिरी बार मौका दे रहे हैं.

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