भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं: जयराम महाराज
कथा के समापन दिवस पर कथा व्यास आचार्य जयराम जी महाराज ने कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल भी मिलता है। वहीं व्यक्ति में धार्मिक आस्था भी जागृत होती है। इसके साथ ही दुगुर्णो की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। इसके साथ भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन, जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। उन्होंने कहा कि हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। उन्होंने कहा कि जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान के लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है। इस दौरान बीते एक सप्ताह से चल रही कथा के समापन अवसर पर मुख्य रूप से श्रीमद्भागवत कथा के मुख्य यजमान के अलावा 111 अन्य यजमानों और उनके परिवारों ने इस आयोजन में बढ़चढ़कर भाग लिया।
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