शनिवार, 10 दिसंबर 2022

मुजफ्फरनगर में BJP की हैट्रिक पर दूसरी बार लगा ब्रेक:उपचुनाव में 26 साल बाद दोहराया इतिहास, मजबूत दिखा भाई-चारा

मुजफ्फरनगर के खतौली उप चुनाव में भाजपा की जीत की हैट्रिक को दूसरी बार ब्रेक लगा। सियासी पन्नों में 26 साल बाद इतिहास दोहराया गया। लेकिन इस बार भी चोट भाजपा को ही लगी और विधानसभा चुनाव में उसका प्रत्याशी लगातार तीसरी जीत से महरूम रह गया। हांलाकि इस चुनाव ने 2013 दंगे की कड़ुवाहट को पीछे छोड़ते हुए भाईचारे की भावना को मजबूत किया।

जीत बरकरार नहीं रख सकी भाजपा
5 दिसंबर को खतौली सीट पर हुए उप चुनाव का परिणाम गुरुवार को आया। खतौली सीट पर भाजपा की प्रत्याशी रहीं निवर्तमान विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी रालोद के मदन भैया से 22144 मतो से हार गई। राजकुमारी सैनी की हार के साथ भाजपा को दोगुना झटका लगा। भाजपा के लिए दूसरा झटका खतौली सीट पर लगातार तीसरी जीत से वंचित रहने का रहा। 26 साल पहले भी भाजपा और रालोद के बीच इस सीट पर ऐसा ही सियासी अवसर आया था। उसमें रालोद (तब की भारतीय किसान कामगार पार्टी) ने बाजी मार ली थी।

साल 1996 में हुए उक्त विधानसभा चुनाव से पहले इस सीट पर भाजपा ने लगातार 1991 और 1993 में सुधीर बालियान को प्रत्याशी बनाकर दो जीत हासिल की थी। इसके बाद भाजपा ने सुधीर बालियान पर ही विश्वास जताया और उनको तीसरी बार मैदान में उतारा था। राम मंदिर लहर में दो चुनाव भाजपा की प्रचंड जीत वाले रहे, लेकिन 1996 में भाजपा की ताकत यहां कमजोर पड़ी और अजित सिंह की नई पार्टी भारतीय किसान कामगार पार्टी के प्रत्याशी राजपाल बालियान ने यहां पर भाजपा की हैट्रिक के सपने को चकनाचूर कर दिया।

उस विधानसभा चुनाव में राजपाल बालियान को 81334 और भाजपा के सुधीर बालियान को 43544 वोट मिले थे। राजपाल 37790 मतों के बड़े अंतर से विधायक बने।अगला चुनाव भी राजपाल बालियान ने रालोद प्रत्याशी के रूप में जीता था।

इस बार भाजपा की जीत की हैट्रिक मदन भैया ने रोकी। खतौली सीट पर 2017 और 2022 मुख्य चुनाव भाजपा प्रत्याशी रहे विक्रम सैनी ने लगातार जीता, लेकिन इस सीट पर भाजपा अपनी जीत को बरकरार नहीं रख सकी और उसकी प्रत्याशी राजकुमारी सैनी रालोद के मदन भैया से हार गईं।

2013 दंगा भूल आगे बढ़ने का संदेश
खतौली विधानसभा उप चुनाव में क्षेत्र के लोगों ने नई मिसाल कायम की। भाजपा ने रालोद के मदन भैया को बहारी और बाहुबली बताकर प्रचारित किया था। लेकिन लोगों ने उनकी जीत पर अपनी मुहर लगाकर भाजपा प्रचार तंत्र की हवा निकाल दी। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाएगा कि इसमें लोगों ने दंगे की यादों को पूरी तरह से भुला दिया।

भाजपा के दिग्गज नेताओं ने भी 2013 दंगे का जिक्र कर वोट मांगे। दंगे से पहले कवाल कांड में मारे गए गौरव की मां ने भी खतौली उप चुनाव में ताल ठाेंकी थी, लेकिन जनता से उन्हें केवल 146 वोट ही मिल पाए। इस तरह खतौली के लोगों ने मताधिकार का प्रयोग कर साफ संदेश दिया कि वे दंगे को भूलकर आगे बढना चाहते हैं।