मैनपुरी-रामपुर से खतौली तक... चुनावी नतीजों का वो ट्रेंड जिसने मायावती को बेचैन कर दिया है

उत्तर प्रदेश में उपचुनाव में बीजेपी रामपुर सीट जीतने में कामयाब रही जबकि मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा ने तो खतौली सीट पर आरएलडी ने कब्जा जमाया है. बसपा के उपचुनाव में नहीं होने से सीधा फायदा इस बार सपा-आरएलडी गठबंधन को मिला है. जयंत चौधरी-अखिलेश यादव चंद्रशेखर आजाद को गले लगाकर बसपा के दलित वोटों के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं, जो मायावती के लिए चिंता का सबब बन गया.
सपा-आरएलडी गठबंधन में चंद्रशेखर आजाद को लेने की रणनीति उपचुनाव में बीजेपी से खतौली सीट छीनने में मददगार साबित हुई तो मैनपुरी सीट को बचाने में सपा सफल रही. हालांकि, आजम खान की रामपुर विधानसभा सीट पर काम नहीं आ सकी, जिसके चलते मायावती को निशाना साधने का मौका मिल गया. मायावती ने कहा क मैनपुरी में हुई सपा की जीत और रामपुर में आजम खान की सीट पर योजनाबद्ध कम वोटिंग कराकर सपा की पहली बार हुई हार में यह चर्चा काफी गर्म है कि कहीं यह बीजेपी और सपा की अंदरूनी मिलीभगत तो नहीं.
मायावती का वोटबैंक किसके साथ जाएगा?
बता दें कि यूपी की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में बसपा की गैरमौजूदगी से सभी के मन में एक ही सवाल था कि मायावती का वोटबैंक किसके साथ जाएंगा? सियासत में सारा खेल संदेशों का होता है. ऐसे में मायावती उपचुनाव न लड़कर यह संदेश देना चाहती थी कि बीजेपी और सपा के बीच सीधी लड़ाई में अखिलेश यादव नहीं जीत सकते, क्योंकि गोलागोकर्णनाथ और रामपुर सीट पर बीजेपी जीती थी. वहीं. खतौली और मैनपुरी में मायावती का यह दांव उल्टा पड़ गया. दलित वोट बीजेपी के साथ जाने के बजाय सपा-आरएलडी को मिला.
मैनपुरी सीट पर हुए उपचुनाव में डिंपल यादव ने रिकार्ड जीत गैर यादव मतदाताओं की भूमिका अहम रही. दलितों का वोट भी सपा की ओर घूम गया. ताखा के नारायनपुरा मतदान केंद्र पर केवल दलित मतदाता हैं, इस केंद्र पर सपा को 248 और बीजेपी को महज 18 वोट मिले. ऐसे ही भांवर के मतदान केंद्र पर सपा को 290 वोट मिले तो बीजेपी को सिर्फ एक ही वोट मिल सका. नगला चतुर मतदान केंद्र पर एक भी यादव मतदाता नहीं है, लेकिन यहां पर सपा को 342 बीजेपी को 142 मत मिले. ऐसे ही बाकी दलित बहुल बूथों पर भी नतीजे सपा के पक्ष में रहे.
मैनपुरी में डिंपल के पक्ष में आए जाटव
मैनपुरी संसदीय सीट पर करीब दो लाख दलित मतदाता है, जिनमें से 1 लाख 20 हजार सिर्फ जाटव है. जाटव समुदाय को मायावती का कोर वोटबैंक माना जाता है. दलितों में यही एक वोटबैंक है, जो अभी भी बसपा से साथ है. मैनपुरी उपचुनाव में जाटव समुदाय ने बड़ी संख्या में सपा उम्मीदवार डिंपल यादव के पक्ष में वोटिंग किया है. यही वजह रही कि अखिलेश यादव से लेकर शिवपाल यादव तक ने डिंपल यादव की जीत का श्रेय दलित समुदाय को दिया और कहा कि यह अंबेडकरवादी और लोहियावादियों की जीत है.
वहीं, खतौली विधानसभा सीट पर बीजेपी और आरएलडी की सीधी लड़ाई थी. इस सीट पर भी बसपा ने किसी को कैंडिडेट नहीं बनाया था, जिसके चलते दलित मतदाता पूरी तरह से आजाद था. आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने चंद्रशेखर के जरिए दलितों के दिल में जगह बनाने में रणनीति बनाना सफल रहा. चंद्रशेखर की अपने दलित समुदाय के घर-घर जाकर दस्तक दिया और आरएलडी के लिए वोट मांगे. आरएलडी का यह दांव बीजेपी से खतौली सीट छीनने में मददगार साबित हुई और उसे अपने नाम कर लिया.
खतौली और मैनपुरी सीट पर मिली जीत के बाद चंद्रशेखर आजाद की सपा-आरएलडी गठबंधन में एंट्री हो गई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश-जयंत-चंद्रशेखर एक साथ एक मंच पर खड़े नजर आ सकते हैं, क्योंकि उपचुनाव में मिली जीत ने गठबंधन के हौसले बुलंद कर दिए हैं. पश्चिमी यूपी की सियासी समीकरण के लिहाज से यह गठबंधन बीजेपी के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है.
अखिलेश-जयंत और चंद्रशेखर की तिकड़ी एक साथ?
अखिलेश-जयंत चौधरी और चंद्रशेखर की तिकड़ी आगामी लोकसभा चुनाव में एक साथ दिखेगी. यह पश्चिम यूपी में बीजेपी और बीएसपी दोनों के लिए राजनीतिक तौर पर कड़ी चुनौती पेश कर सकती है. पश्चिम यूपी की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित काफी अहम भूमिका अदा करते हैं. आरएलडी का कोर वोटबैंक जहां जाट माना जाता है तो सपा का मुस्लिम है. चंद्रशेखर आजाद ने दलित नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है.
दलित-मुस्लिम-जाट-गुर्जर का मजबूत कॉम्बिनेशन आगे काम आ सकता है. सियासी जानकारों की मानें को तो चंद्रशेखर आजाज के मजबूत होने से बीएसपी से जुड़ा दलित बंटेगा और बीजेपी की तरफ रुख करने से रुक सकता है. इसका फायदा सपा-आरएलडी गठबंधन को हो सकता है, क्योंकि अभी तक चंद्रशेखर से लेकर जयंत चौधरी तक सपा-रालोद गठबंधन के साथ रहने के साफ संकेत दे रहे हैं.
बता दें कि पश्चिम यूपी में जाट 20 फीसदी के करीब हैं तो मुस्लिम 30 से 40 फीसदी और दलित समुदाय भी 25 फीसदी के ऊपर है तो गुर्जर तीन फीसदी है पर पश्चिमी में करीब 15 फीसदी हैं. पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित-गुर्जर समीकरण बनता है कि बीजेपी के साथ-साथ बसपा के लिए भी चुनौती खड़ी हो जाएगी. खतौली में मिली आरएलडी की जीत कुछ ऐसे ही संकेत दे रही है, क्योंकि निकाय चुनाव सिर पर है और 2024 के लोकसभा चुनाव में डेढ़ साल का ही वक्त बाकी है.
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